शनिवार, 4 जनवरी 2025

विप्र सुदामा - 57

 लेखक : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।

अशर्फी लाल मिश्र (1943------)








थाली रखी  रही  छप्पन  भोग,

जल  पीकर गुजारी  सारी रात।

अकेले कभी पुण्य मिलता नहीं,

रुक्मिणी  भामा  एक ही  बात।।


उषाकाल  समय  अनुमान,

कान्हा ने शैय्या  त्यागी थी।

मीत  मिलन  अति उत्कंठा,

कान्हा हृदय  में  जागी  थी।।


नित्य क्रिया से निवृत्त हो,

जा पहुँचे अब ड्योढ़ी पर।

बाहर  रथ  पर था सारथी,

धाय  बैठ  गये  मुरलीधर।।


सारथी  से  ले  बाग  हाथ में,

कहा  ठहरो यहीं महल  द्वार।

हमारी इच्छा नगर भ्रमण की,

इकला जाना चाहूँ नगर द्वार।।


कुशल   सारथी  थे  कान्हा,

बाग  खींच   दी  घोड़ों  की।

उड़  चला   रथ  कान्हा  का,

पद चाप सुने नहिं घोड़ों की।।

लेखक : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©

2 टिप्‍पणियां:

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