गुरुवार, 2 जून 2022

नीति के दोहे मुक्तक

 --अशर्फी लाल मिश्र

अशर्फी लाल मिश्र






अंधा

कुछ हों गरज पर अंधे , कुछ होते कामांध।

कुछ मद में अंधे दिखें, कुछ होते जन्मांध।।1।।

शत्रु 

वैरी  सदा  ऋणी  जनक, मूरख पुत्र को जान।

व्यभिचारिणी हो जु मातु, सुन्दर तिय अनुमान।।2।।

धन

समाज में जीवित वही, हो धन  जिसके पास।

मीत  बंधु हों  पास में , दिखे  गुणो का बास।।3।।

--अशर्फी लाल मिश्र , अकबरपुर, कानपुर।


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