गुरुवार, 26 मई 2022

नीति के दोहे मुक्तक

 --अशर्फी लाल मिश्र

अशर्फी लाल मिश्र








धनवान

सद्विद्या   हो   पास   में, धनी उसे ही जान।

अपयश का जीवन सदा,मानो मृत्यु समान।।1।।

दुर्जन

होय तक्षक विष  दंत में, वृश्चिक पूंछहि संग।

मधुमक्खी  सिर जानिये, दुर्जन  सारे   अंग।।2।।

अनर्थ 

यौवन धन-संपत्ति हो,प्रभुता अरु अविवेक।

चारो होंय एक  साथ, अनर्थ  होंय   अनेक।।3।।

--अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।





2 टिप्‍पणियां:

विप्र सुदामा - 40

  लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर। अशर्फी लाल मिश्र (1943-----) नाथ  प्रभु  कृपा जब होये, क्षण में  छप्पर महल होये।  प्...