--अशर्फी लाल मिश्र
अशर्फी लाल मिश्र |
प्रकृति
हो धीरज वाणी उचित, या उदारता ज्ञान।
इनको मानो सहज गुण, नहि उपदेशन भान।।
शिष्टाचार
लघुता में गुरूता छिपी, गुरूता को लघु जान।
पहले बोले भेंट में, उसमें गुरूता मान।।
दुर्जन
दुर्जन को शिक्षा दिये, कबहुँ न सज्जन कोय।
जिमि जड़ सींचे दूध से, नीम न मीठी होय।।
--अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।
बढ़िया दोहे
जवाब देंहटाएंOnkar जी आप का आभार.
हटाएंअच्छे दोहे हैं, मान्यवर वाह!
जवाब देंहटाएंआप का आभार.
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जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(२८-०५-२०२२ ) को
'सुलगी है प्रीत की अँगीठी'(चर्चा अंक-४४४४) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
अनीता जी आप का बहुत बहुत आभार.
हटाएंमाफ़ी चाहती हूँ आदरणीय 🙏
जवाब देंहटाएंअनीता जी!
हटाएंयह साधारण मानवीय त्रुटि है इसमें माफी का कोई प्रश्न ही नहीं उठता. आप हमारी छोटी बहिन सदृश्य हैँ. आप ने माफी शब्द लिखकर हमारा सम्मान बढ़ाया है अतः बहुत बहुत शुक्रिया.
सटीक दोहे।प्रणाम।
जवाब देंहटाएंआभार.
हटाएंस्मरणीय दोहे।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार.
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