--अशर्फी लाल मिश्र
अशर्फी लाल मिश्र |
पाप
हिय में जिसके पाप हो, तीरथ गये न शुद्ध।
मदिरा घट तपाये से, फिर भी रहे अशुद्ध।।
मान
वृक्ष एक के पुष्पों से , विपिन सुवासित जान।
वैसे हि सु संतान से, कुल का जग में मान।।
सफलता का मंत्र
चुप से मिटे कलह सदा, दरिद्रता उद्योग।
जाग्रत का ही भय मिटे, यह जानत सब लोग।।
--अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।
आप का बहुत बहुत आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया।
हटाएंबहुत अच्छे प्रेरक सामयिक दोहे है
जवाब देंहटाएंकविता जी आप का बहुत बहुत शुक्रिया।
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