सोमवार, 30 मई 2022

नीति के दोहे मुक्तक

 -- अशर्फी लाल मिश्र

अशर्फी लाल मिश्र 






त्यागना

विद्याहीन गुरू त्याग, बंधु त्याग बिनु प्रीति।

देश काल भी त्यागिए, जँह कोई नहि नीति ।।1।।

जुड़वाँ भ्राता

जुड़वाँ भ्राता भले ही, गुण में नहीं समान ।

जैसे  कांटा  अरु बेर, गुण में हैं असमान ।।2।।

लक्ष्मी

न दंपति में लड़ाई हो , न मूर्ख पूजा जाय।

घर में कुछ संचय होय, लक्ष्मी दौड़ी आय।।3।।

-अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।

7 टिप्‍पणियां:

  1. ' मयंक ' जी आप का बहुत बहुत शुक्रिया।

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  2. बढ़िया दोहे । आसमान की जगह असमान होना चाहिए शायद ।

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  3. संगीता जी! बहुत बहुत शुक्रिया।

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विप्र सुदामा - 40

  लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर। अशर्फी लाल मिश्र (1943-----) नाथ  प्रभु  कृपा जब होये, क्षण में  छप्पर महल होये।  प्...