- लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।
अशर्फी लाल मिश्र (1943----) |
दौड़े दूत द्वारिका से अब,
जा पहुँचे विश्वकर्मा पास।
जाओ शीघ्र पुरी सुदामा,
भव्य कुटी हो महल पास।।
विश्वकर्मा दौड़े सरपट,
जा पहुँचे पुरी सुदामा।
महल द्वार पद्मासन मेँ,
ध्यान लगाये विप्र सुदामा।।
शिल्पी ने मन में सोचा,
छाऊँ दिव्य ऐसी छानी।
विप्र ध्यान मेँ बने ही रहें,
अरु अन्दर बैठे हों छानी।।
छानी बना दी शिल्पी ने,
विप्र भी नहि जान सके।
आँखें खुलीं,खुली ही रहीँ,
मन हर्षित छानी देख के।।
छानी ऐसी दिव्य थी,
दिखे केवल विप्र को।
छवि उसकी मनमोहक,
मन भाई थी विप्र को।।
- लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©
बहुत सुंदर भक्तिमय रचना,आदरणीय शुभकामनाएँ
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