मंगलवार, 6 फ़रवरी 2024

विप्र सुदामा - 37

 रचनाकार एवं लेखक : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।

अशर्फी लाल मिश्र (1943-----)







हठी   सुदामा   खड़े    गली,

सुशीला की सुनते एक नहीं।

बिन बच्चों की कैसे सुशीला?

प्रिया  मेरी  बिन  बच्चों  नहीं।।


सुशीला  दौड़ी  उस  ओर,

जँह बच्चे केलि सरोवर में।

अब सुशीला हो गई उदास,

थे बच्चे अब नहीं सरोवर में।।


इधर बच्चों ने जब जाना

पिता आ गये द्वारिका से।

झट पट दौड़े निज घर को,

अन्दर पहुँचे गुप्त द्वार से।।


नवल वस्त्र थे अब तन में,

केश भी थे अब सुसज्जित।

सभी बच्चे निकले महल से,

देखकर विप्र अब अचंभित।।


बच्चे सभी नत मस्तक थे

सिर था विप्र के चरणों में

सुदामा मन अब गद गद 

मन पहुँचा प्रभु चरणों में।।

रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर, उत्तरप्रदेश, भारत।©


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