--अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।
अशर्फी लाल मिश्र |
कवि कुछ ऐसा करिये गान,
होये मानवता का मान।
दानवता सिर उठा रही,
मानवता है सिसक रही।।
छाए हैं परमाणु के बादल,
कवि कुछ ऐसी हवा बदल।
उड़ जाएं सारे बादल,
ठंढी हो जाये हलचल।।
कवि ऐसा अवसर कब होगा?
मानवता का सिर ऊंचा होगा।
दानवता नत मस्तक होगी,
मानवता की इज्जत होगी।।
-- लेखक एवं रचनाकार: अशर्फी लाल मिश्र ,अकबरपुर, कानपुर।©
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (23-03-2022) को चर्चा मंच "कवि कुछ ऐसा करिये गान" (चर्चा-अंक 4378) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत आभार।
हटाएंआमीन
जवाब देंहटाएंसुंदर टिप्पणी के लिए Anita जी बहुत बहुत आभार।
हटाएंकवि कुछ ऐसा करिए गान ...
जवाब देंहटाएंसौ बात की एक बात !
कवि का कहा कौन सुनता है ?
बहरहाल नींद से जगा सकता है.
बहुत सुंदर।आभार।
हटाएंछाए हैं परमाणु के बादल,
जवाब देंहटाएंकवि कुछ ऐसी हवा बदल।
उड़ जाएं सारे बादल,
ठंढी हो जाये हलचल.. वाह!बहुत खूब कहा सर।
सादर
बहुत बहुत आभार।
हटाएंकवि ही अपनी कविता से मानवता को जगाये
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सृजन
वाह!!!!
बहुत बहुत आभार।
हटाएंछाए हैं परमाणु के बादल,
जवाब देंहटाएंकवि कुछ ऐसी हवा बदल।
उड़ जाएं सारे बादल,
ठंढी हो जाये हलचल।।
यूक्रेन के हालत देख यही आशंका रुह कंपा देती है…सुन्दर रचना.
उषा जी बहुत बहुत आभार।
जवाब देंहटाएंकवि कुछ ऐसी हवा बदल।
जवाब देंहटाएंउड़ जाएं सारे बादल,
ठंढी हो जाये हलचल.. वाह!बहुत खूब 👍
बहुत बहुत आभार।
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