बुधवार, 28 अक्टूबर 2020

नीति के दोहे (मुक्तक )

कवि : अशर्फी लाल मिश्र ,अकबरपुर ,कानपुर। 

अशर्फी लाल मिश्र 

दुर्जन 

विषधर  तभी  है  डसता ,जानहि  जोखिम जानि। 
दुर्जन   सदा   हि  घात में ,पग  पग  देवै    हानि।।

धैर्य  

सिंधु तोड़े मर्यादा ,प्रलय भयंकर काल। 
सज्जन सदा अडिग रहे ,विपत भयंकर काल।।


पतन

तटिनी तट पर होइ तरु , विपक्ष रहित जनतंत्र। 
लाल     कहें   दोऊ  मिटै , तरू और जनतंत्र ।।

कैसे मनायें 

मूर्ख मानै बात मान ,लोभी पैसा पाइ। 
सुधी मानै सच बोले ,घमण्डि आदर पाइ।।

© Poet: Asharfi Lal Mishra, Akbarpur, Kanpur.




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