शनिवार, 29 मार्च 2025

फूल गुलाब का

 लेखक : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।

अशर्फी लाल मिश्र (1943----)






बगिया में इक फूल  गुलाब,

देख माली कर रहा आदाब।

भौरे  करते उसका  यशगान,

चेहरे पर थी उसके मुस्कान।।


जब जब हँसता फूल गुलाब, 

आता  माली  पास  गुलाब।

माली जब जब हाथ बढ़ाये,

गुलाब तब तब सिर झुकाये।।


ऐ गुलाब  मैं सदा  ही चाहूँ,

तुझे मिले ऊँचा  सिंहासन।

महादेव के सिर  पर  बैठो,

ऊँचा पावन  है  सिंहासन।।


भले  महादेव  सिर आसन,

कुछ  काल  बाद  मुरझाऊँ।

तब होगी  दुर्गति अति मेरी,

जब कूड़ेदान में फेंका जाऊँ।।


रग रग  में तेरे  अदृश्य सार,

गुलाब तेरा जीवन उपकारी।

अलि तो रहते सदा दास ही,

अति प्रिय किशोर नर नारी।। 

-लेखक : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©

बुधवार, 26 मार्च 2025

विप्र सुदामा - 69

 लेखक - अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।

अशर्फी लाल मिश्र ( 1943-----)







हर  कोई है अब दौड़ रहा,

जान सुदामा  मीत विदाई।

बूढ़े  बच्चे  सभी  नर  नारी,

हर कोई  देना चाहे  विदाई।।


हर कोई अंखियन  नीर भरे,

दे  रहा  विदाई   कान्हा  को।

सुशीला  अँखियन  नीर  भरे, 

कान्ह भूल न जाना आने को।।


हर कोई  बचन था माँग रहा,

फिर कब अइहौ  मोरी नगरी।

प्रेमाश्रु  टपक रहे अंखियन से,

हम  जल्दी  अइबे  तेरी नगरी।।


माता यशोदा से झूँठा वादा,

कबहूँ  न गये गोकुल नगरी।

गोपी ग्वाल  बाल संग खेले,

बने नृप भूले  गोकुल नगरी।।


की  यमुना तट पर  रासलीला,

भानु  लली  अरु  गोपिन  संग।

समय  पा  कान्ह  द्वारिका  नृप,

भूले भानुलली अरु गोपिन संग।।

- लेखक: अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©

गुरुवार, 20 मार्च 2025

विप्र सुदामा - 68

 लेखक : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।

अशर्फी लाल मिश्र (1943----)








सुशीला  सुन  कान्हा  मुख,

घर जाना  चाहूँ  देवि अभी।

चरण रज लेकर सुशीला के,

चल पड़े थे कान्हा धीरे धीरे।।


नयन अश्रु अब दे रहे बिदाई,

सुशीला मुख  इक शब्द नहीं।।

कान्हा गये अब मीत के पास,

गले  लिपटे  मुख   शब्द नहीं।।


थी लहर ख़ुशी की  चारों ओर,

जब कान्हा आये पुरी सुदामा,

घर घर में  एक  ही चर्चा होती,

हैँ द्वारिका राजा मीत सुदामा।।


आज वापसी द्वारिका राजा,

छा  गई  उदासी चारों  ओर।

पक्षी कलरव अब बन्द किये,

पशु भी अब मुख तृण त्यागे।।


छा गई उदासी पुरी सुदामा,

हर कोई दौड़ दे रहा बिदाई।

हर कोई  अँसुअन नीर भरे,

विप्र  मीतहि दे रहा  बिदाई।।

लेखक: अशर्फी लाल मिश्र,अकबरपुर, कानपुर।©



गुरुवार, 13 मार्च 2025

विप्र सुदामा - 67

 लेखक : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।

    अशर्फी लाल मिश्र ( 1943----)

दूत मुख सून हाल पुरी का,

मन में बिचलित कान्ह हुये।

बैठे थे जो कान्ह अभी तक,

अब युग कर जोरे खड़े हुये।।


विप्र ने कहा मीत कान्हा से,

मिलकर जाओ सुशीला से।

कान्हा  चले महल की ओर,

अनुमति  हेतु  सुशीला  से।।


ठिठकते कदम  कन्हैया  के,

बढ़ रहे  थे  महल  की ओर।

मुख्य द्वार पर लगा था चित्र,

भानु  लली संग  माखनचोर।।


कुछ  काल चित्र में खो गये,

फिर  दस्तक दी  कन्हैया ने।

दौड़कर पहुँची सुशीला द्वार,

सिर झुका  दिया  कन्हैया ने।।


मान  सहित सुशीला साथ,

तब महल गये द्वारिकानाथ।

देवि सुशीला अनुमति  चाहूँ,

हम जाना  चाहे दूत के साथ।।

लेखक: अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©

शनिवार, 8 मार्च 2025

विप्र सुदामा - 66

 लेखक : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।

अशर्फी लाल मिश्र (1943------)







बहु काल रहे जब कन्हैया,

पुरी सुदामा मीत के पास।

भूल गये थे कान्ह द्वारिका,

जब से आये सुदामा पास।।


देख सम्मुख द्वारिका दूत,

दंडवत कर रहा बार बार।

कहौ दूत तुम कैसे आये?

किसने मेरा पता बताया।।


नाथ रानियाँ सब व्याकुल,

व्याकुल सारी  द्वारिका है।

पक्षी भी कलरव बन्द किये,

बिनु नाथ  द्वारिका  सूनी है।।


सभी  रानियाँ भोजन त्यागे,

अंखियन नीर  सदा ही बहे।

दिन रात कभी भी नींद नहीं,

कोई मुख से बोले शब्द नहीं।।


नाथ बिना अब द्वारिका में,

छा गई  उदासी चारों ओर।

अब तो नाथ चलो द्वारिका,

हम आप  को  लेने आये हैँ।।

लेखक: अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©

शनिवार, 1 मार्च 2025

स्वर्णिम दिन

 लेखक : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।

अशर्फी लाल मिश्र (1943----)








मत  निराश  करो  मन  को, 

जब दुरदिन बादल छाये हों।

अश्रु रोक  निज पथ खोजो,

तब  स्वर्णिम  दिन  आयेगा।।



जब दुरदिन मेघ गरजते हों,

तड़ित  मध्य  चमकती  हो।

उस  प्रकाश  में पथ खोजो,

तब स्वर्णिम  दिन  आयेगा।।


अरि  गर्जन कर्कश ध्वनि,

कर्ण कुहर  में  चुभती हो।

चुनो तुम शीतल शांत पथ,

तब स्वर्णिम  दिन आयेगा।।


त्रिविध ताप से होगी मुक्ति,

जब दुरदिन मेघ उड़ जायेंगे।

शांत हो जायेगा अरि गर्जन,

तब  स्वर्णिम  दिन  आयेगा।।

लेखक : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©

गुरुवार, 27 फ़रवरी 2025

विप्र सुदामा - 65

 लेखक : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।

अशर्फी लाल मिश्र (1943----)







इधर कन्हैया पास सुदामा,

युग बीता जैसे  क्षण सम।

उधर द्वारिका में भामा का,

क्षण बीत  रहा  युग  सम।।


भामा सहित सभी रानियाँ,

थीं चिंतित पुरी द्वारिका में।

कन्हैया भूले  राज द्वारिका,

मगन अब मीत सुदामा में।।


भामा ने भेजे दूत चहुँ ओर,

कहाँ टिके हैँ द्वारिकानाथ।

दूत पहुँच गये पुरी सुदामा,

रमे थे कान्ह सुदामा साथ।।


कुटिया  द्वार  खड़ा  था  दूत,

दंडवत  कर  रहा   बार  बार।

नाथ बिनु द्वारिका शोभा ऐसी,

कलशहीन मन्दिर शोभा जैसी।।


नाथ बिना  अब सभी रानियाँ,

भोजन पानी  सब  कुछ त्यागे।

नगरवासियों  की ही बात नहीं,

अब तो गायों ने भी  तृण त्यागे।।

लेखक : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर कानपुर।©

फूल गुलाब का

  लेखक : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर। अशर्फी लाल मिश्र (1943----) बगिया में इक फूल  गुलाब, देख माली कर रहा आदाब। भौरे  करते उसका  यशगा...