लेखक : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।
अशर्फी लाल मिश्र (1943----) |
बगिया में इक फूल गुलाब,
देख माली कर रहा आदाब।
भौरे करते उसका यशगान,
चेहरे पर थी उसके मुस्कान।।
जब जब हँसता फूल गुलाब,
आता माली पास गुलाब।
माली जब जब हाथ बढ़ाये,
गुलाब तब तब सिर झुकाये।।
ऐ गुलाब मैं सदा ही चाहूँ,
तुझे मिले ऊँचा सिंहासन।
महादेव के सिर पर बैठो,
ऊँचा पावन है सिंहासन।।
भले महादेव सिर आसन,
कुछ काल बाद मुरझाऊँ।
तब होगी दुर्गति अति मेरी,
जब कूड़ेदान में फेंका जाऊँ।।
रग रग में तेरे अदृश्य सार,
गुलाब तेरा जीवन उपकारी।
अलि तो रहते सदा दास ही,
अति प्रिय किशोर नर नारी।।
-लेखक : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©