शनिवार, 11 नवंबर 2023

विप्र सुदामा - 30

 -- अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।


अशर्फी लाल मिश्र (१९४३----)









सुशीला थी रत्नो से  जड़ित,

जूड़े में  था  गजरा  शोभित।

थी  विप्र  पैरों  में  अब  नत,

मन सुदामा  बहुत सशंकित।।


विप्र मन में  कर  रहे विचार,

सज्जा इसकी अप्सरा जैसी। 

वेश भूषा अरु  हाव भाव से,

मनो दिखती  गणिका  जैसी।।


विप्र  हटे   दो  कदम  तभी,

मत  दिखलाओ रूप जाल।

हम  हैं  तत्व  ज्ञानी  ब्राह्मण,

मायावी दिखता  रूप जाल।।


तू कहती अपने को सुशीला,

पर तू दिखती गणिका जैसी।

हिरण्याक्षी अरु कालिख रेख,

हाव भाव से तू गणिका जैसी।।


मेरी सुशीला सीधी सात्विक,

उसमे दिखता था  भोलापन।

गंभीर भाव की मेरी सुशीला,

तुझ में  दिख  रहा  चंचलपन।।

-- लेखक एवं रचनाकार:अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©









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