सोमवार, 6 जून 2022

नीति के दोहे मुक्तक

 --अशर्फी लाल मिश्र 

अशर्फी लाल मिश्र






दुख

घरनि  मरै  बुढ़ापे में, धन हो  भ्राता हाथ।

भोजन होय पराधीन, दुखड़ा केवल साथ।।1।।

आभूषण

गुण आभूषण रूप का,कुल  का मानौ शील।

विद्या भूषण सिद्धि का,  धन होय क्रियाशील।।2।।

कुल

ऊँचा कुल किस काम का, जिसके विद्या नाहि।

विद्या   जिसके  पास   हो, कुल मत पूंछो ताहि।।3।।

--अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर कानपुर।

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नीति के दोहे मुक्तक

 लेखक : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर। अशर्फी लाल मिश्र (1943------) मनहि  हारे  हार मीत, मन के जीते जीत। रक्त चाप सदा हि बढ़े, मन के हार...