रविवार, 22 सितंबर 2019

मेरे बलमा के नखरे बड़े बड़े

-- अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©

मेरे बलमा के नखरे बड़े बड़े
मैं पुकार   रही  हूँ  खड़े खड़े।

बचपन  बीता  यौवन बीता
बीता       सारा        जीवन।

वाणी  मेरी   क्षीण   हुई  है
क्षीण     हुआ    है      तन।।
                     
अशर्फी लाल मिश्र 



आओ बलमा  पकड़ो बांह

पूरन  कर  दो  मेरी  चाह।

बलमा छोड़ो अपने नखड़े
मैं पुकार  रही हूँ  खड़े खड़े।।
                                            
   उलझा   हूँ    तृष्णा    में                                     
  पड़ा हुआ माया के बंधन।

हृदय  हमारा  करता क्रंदन
दया विचारो हे जगबन्दन।।

भाई बन्धु मेरे काम न आवें 
एक आस बची है सजना की।

आँखें  मेरी  पंथ  निहारे
राह देखती प्रियतम की।।

आओ प्रियतम छोड़ो नखड़े
मैं   पुकार  रही हूँ  खड़े खड़े।

लेखक एवं रचनाकार: अशर्फी लाल मिश्र ,अकबरपुर ,कानपुर ©

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