-- अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©
मेरे सजना हैं रूठे-रूठे ,मनाऊँ कैसे।
मेरे सइयां बसे परदेश ,जाऊँ कैसे।।
मेरे बलमा की बड़ी-बड़ी अँखियाँ।
एक पल देखें मैं होऊँ निहाल।।
मेरे सइयाँ की बड़ी-बड़ी बहियाँ।
भर लेयँ अंक में ,होऊँ निहाल।।
मेरे बलमा के ऊँचे अवास।
जाऊं कैसे ? मेरे सजना हैं ----
मेरी वाणी में कडुवे बोल ,बुलाऊँ कैसे।
मेरी सूरत है रूप-कुरूप ,लुभाऊँ कैसे।।
सइयां का मारग बड़ा भयंकर।
पथ में कांटे, नुकीले हैं कंकर।।
ऊबड़ - खाबड़ नदी और नाले।
चलत -चलत पड़ गये हैं छाले।।
कैसे आकर मिलूँ मैं सइयां।
रूठे - रूठे मेरे हैं सइयां।।
मुझ पातक पर कुछ दया करो।
आकर दरस दिखाओ मेरे सइयां।।
मेरे सजना हैं रूठे-रूठे ,मनाऊं कैसे।
मेरे बलमा बसे परदेश, जाऊँ कैसे।।
मेरे सइयां बसे परदेश ,जाऊँ कैसे।।
मेरे बलमा की बड़ी-बड़ी अँखियाँ।
एक पल देखें मैं होऊँ निहाल।।
मेरे सइयाँ की बड़ी-बड़ी बहियाँ।
भर लेयँ अंक में ,होऊँ निहाल।।
[© Asharfi Lal Mishra, Akbarpur, Kanpur] |
मेरे सइयाँ बसे परदेश।
कैसे भेजूं संदेश।।
मेरे बलमा की अजब है चाल ।
पल में नभ में ,पल में पताल।।
मेरे बलमा के ऊँचे अवास।
जाऊं कैसे ? मेरे सजना हैं ----
मेरी वाणी में कडुवे बोल ,बुलाऊँ कैसे।
मेरी सूरत है रूप-कुरूप ,लुभाऊँ कैसे।।
सइयां का मारग बड़ा भयंकर।
पथ में कांटे, नुकीले हैं कंकर।।
ऊबड़ - खाबड़ नदी और नाले।
चलत -चलत पड़ गये हैं छाले।।
कैसे आकर मिलूँ मैं सइयां।
रूठे - रूठे मेरे हैं सइयां।।
मुझ पातक पर कुछ दया करो।
आकर दरस दिखाओ मेरे सइयां।।
मेरे सजना हैं रूठे-रूठे ,मनाऊं कैसे।
मेरे बलमा बसे परदेश, जाऊँ कैसे।।
-अशर्फी लाल मिश्र ,अकबरपुर ,कानपुर।
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