लेखक : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर कानपुर।
आई सर्दी, आई सर्दी ।
नहीं किसी से हमदर्दी।।
उसके तीखे तेवर से।
घबराते सब नर-नारी।।
अग्नि के शरण गये।
जटा - जूट धारी।
नहीं किसी से हमदर्दी।।
उसके तीखे तेवर से।
घबराते सब नर-नारी।।
अग्नि के शरण गये।
जटा - जूट धारी।
कोहरा पाला उसके मीत।
भानु हुआ उससे भयभीत।।खोई चमक भानु ने अपनी।
घर -घर जलती है अग्नि।।
कोहरे के हमले से।
भानु बहुत घबड़ाया।।
किसी कोने में जाकर।
अपना मुँह छिपाया।।
बूढ़ों के हैं हाड़ काँपते।
बच्चे उछलें दे तारी।।
सर में दौड़ें हंस , सवन।
बतखें मारैं किलकारी।।
हीटर ,ब्लोवर मंहगे।
चाय की मारा मारी।।
आई सर्दी , आई सर्दी।
नहीं किसी से हमदर्दी।।
कवि : अशर्फी लाल मिश्र ,अकबरपुर ,कानपुर
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