गुरुवार, 30 जनवरी 2025

विप्र सुदामा - 62

 लेखक : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।

अशर्फी लाल मिश्र (1943------)






ऐसी प्रीति उमड़ी मन में,

कान्ह पैदल ही द्वार गये।

देख सुदामा कृष्ण मिलन,

त्रिदेव  भी  चकित  भये।।


मीत  बताओ  भामा कैसी,

कैसी  है    देवी   रुक्मिणी।

मन में बस रहीं  देवियाँ मेरे,

साथ नाहीं भामा रुक्मिणी।।


मीत आतुर   थीं   आने  को,

रुक्मिणी  अरु    सत्यभामा,

हम  बिना बताये  आये मीत,

नहिं   रुक्मिणी  नहीं  भामा।।


दौड़कर  आई  थी  सुशीला,

जँह कान्ह बैठे थे कुटिया में।

सिर रख दिया था कान्हा ने,

सुशीला के  पावन  चरणों में।।


सुशीला ने कहा उठो मुरारी!

अब पधारो  निज महल में।

सुशीला के प्रेम  बस होकर,

चल पड़े थे कान्हा महल में।।

लेखक : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©


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