-- अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।
अशर्फी लाल मिश्र |
सूखा पेड़ आम का कहता,
मुझ में कभी जवानी थी।
तन पर हरी चादर लिपटी,
मोहक अदा हमारी थी।।
पास खड़े थे कई साथी,
भव्य दिखती अमराई थी।
उन्नत उरोज रसाल देख,
सब के मन में लालसा थी।।
'लाल' की लालसा एक रही,
पक्व रसाल हो हाथों में,
मुँह लगा कर जी भर खाऊं।
भाग्य सराहूँ जीवन में ।।
-- लेखक एवं रचनाकार: अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©
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