© अशर्फी लाल मिश्र,अकबरपुर, कानपूर ।
गए थे अपना घर छोड़कर,
उदर की भूख मिटाने के लिए।
आज वही विवश हो रहे,
वापस घर आने के लिए।।
जीवन का अवसान जान,
उन्मुख निज गृह की ओर।
विवश हो रहे हैं आज,
वापस घर आने के लिए।।
सिर पर है पोटली,
साथ में संगिनी।
आँखें अश्रु पूरित,
वापस घर आने के लिए।।
भूख से व्याकुल,
पैरों में पड़े हैं छाले।
कभी आँखें प्रिया की ओर,
वापस घर आने के लिए।।
=*=
Asharfi Lal Mishra |
गए थे अपना घर छोड़कर,
उदर की भूख मिटाने के लिए।
आज वही विवश हो रहे,
वापस घर आने के लिए।।
जीवन का अवसान जान,
उन्मुख निज गृह की ओर।
विवश हो रहे हैं आज,
वापस घर आने के लिए।।
सिर पर है पोटली,
साथ में संगिनी।
आँखें अश्रु पूरित,
वापस घर आने के लिए।।
भूख से व्याकुल,
पैरों में पड़े हैं छाले।
कभी आँखें प्रिया की ओर,
वापस घर आने के लिए।।
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