© अशर्फी लाल मिश्र ,अकबरपुर, कानपुर *
चेहरे पर न चमक,
न वाणी में कड़क।
कदमों की धमक,
अब क्षीण हुई ।।
होंठ में कम्पन,
वाणी भी शिथिल।
नयनों पर ऐनक,
दृष्टि क्षीण हुई।।
मेरुदंड भी मुड़ी,
कमर भी झुकी।
बस एक लाठी,
हमारा सहारा हुई।।
चहरे की झुर्रियाँ,
मन की लिखावट।
श्वेत केश कहते,
मेरी कहानी।।
चेहरे पर न चमक,
न वाणी में कड़क।
कदमों की धमक,
अब क्षीण हुई ।।
होंठ में कम्पन,
वाणी भी शिथिल।
नयनों पर ऐनक,
दृष्टि क्षीण हुई।।
मेरुदंड भी मुड़ी,
कमर भी झुकी।
बस एक लाठी,
हमारा सहारा हुई।।
चहरे की झुर्रियाँ,
मन की लिखावट।
श्वेत केश कहते,
मेरी कहानी।।
लेखक एवं रचनाकार: अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।
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