© अशर्फी लाल मिश्र ,अकबरपुर , कानपुर *
जेठ दुपहरी की देख तपन।
भय से भूल गई बहना पवन।।
नीचे तपे अवनि का तल।
ऊपर बरसें रवि के वाण।।
सभी छिपे हैं अपने घर में।
मानो कर्फ्यू सूरज का।।
पशु पक्षी भी ढूंढ़ रहे।
आश्रय स्थल छाया का।।
नर नारी सभी हैं व्याकुल।
फ्रिज में ठंडा ढूंढ़ रहे।।
हम भी व्याकुल हो रहे।
कूलर की हैं शरण गहे।।
जेठ दुपहरी की देख तपन।
भय से भूल गई बहना पवन।।
नीचे तपे अवनि का तल।
ऊपर बरसें रवि के वाण।।
सभी छिपे हैं अपने घर में।
मानो कर्फ्यू सूरज का।।
पशु पक्षी भी ढूंढ़ रहे।
आश्रय स्थल छाया का।।
नर नारी सभी हैं व्याकुल।
फ्रिज में ठंडा ढूंढ़ रहे।।
हम भी व्याकुल हो रहे।
कूलर की हैं शरण गहे।।
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