© अशर्फी लाल मिश्र,अकबरपुर, कानपुर।
रजनी साथ रहे उडगन।
न अब रजनी न अब उडगन।।
बीती विभावरी छाई मुस्कान।
खगकुल की है मीठी तान।।
प्राची दिशि खड़ी सुन्दरी।
लाल बिन्दी सोहै भाल।।
एक टक वह खड़ी हुई।
लालीमय जिसके गाल।।
लाल चूनर शोभित तन।
हाथ जिसके सजा है थाल।।
स्वागत करने अपने प्रिय का।
ऊषा सुन्दरी उत्सुक आज।।
-- लेखक एवं रचनाकार:अशर्फी लाल मिश्र , अकबरपुर ,कानपुर।©
रजनी साथ रहे उडगन।
न अब रजनी न अब उडगन।।
बीती विभावरी छाई मुस्कान।
खगकुल की है मीठी तान।।
प्राची दिशि खड़ी सुन्दरी।
लाल बिन्दी सोहै भाल।।
एक टक वह खड़ी हुई।
लालीमय जिसके गाल।।
लाल चूनर शोभित तन।
हाथ जिसके सजा है थाल।।
स्वागत करने अपने प्रिय का।
ऊषा सुन्दरी उत्सुक आज।।
-- लेखक एवं रचनाकार:अशर्फी लाल मिश्र , अकबरपुर ,कानपुर।©
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