रचनाकार एवं लेखक : अशर्फी लाल मिश्र ,अकबरपुर ,कानपुर।©
यमुना तट पर बजे बसुरिया,
गोपी दौड़ी दौड़ी जायँ।
चाँद बिखेरे पूरी शोभा,
कान्हा रहस रचाये जायँ।।
मैं भी जाना चाहूँ उस यमुना तट पर ,
जहाँ कान्ह की बजती बसुरिया हो।
मैं भी चाहूँ उस रज में लोटूँ,
जहँ पर रहस रचाया हो।।
आज भी चाहूँ प्रेम रस में डूबूँ ,
पाषाण हृदय में प्रेम रस रिसता नहीं।
' लाल ' की लालसा धरी रही,
कभी प्रेम का अंकुर फूटा नहीं।।
Asharfi Lal Mishra |
यमुना तट पर बजे बसुरिया,
गोपी दौड़ी दौड़ी जायँ।
चाँद बिखेरे पूरी शोभा,
कान्हा रहस रचाये जायँ।।
मैं भी जाना चाहूँ उस यमुना तट पर ,
जहाँ कान्ह की बजती बसुरिया हो।
मैं भी चाहूँ उस रज में लोटूँ,
जहँ पर रहस रचाया हो।।
आज भी चाहूँ प्रेम रस में डूबूँ ,
पाषाण हृदय में प्रेम रस रिसता नहीं।
' लाल ' की लालसा धरी रही,
कभी प्रेम का अंकुर फूटा नहीं।।
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