© अशर्फी लाल मिश्र , अकबरपुर, कानपुर *
बांसुरी हमारी बैरिन है,
कान्ह की अति ही प्यारी रही।
सूखे बांस की बांसुरी वह,
हमरे दिल को जलाय रही।।
वह बांसुरी हमारी सौतन है,
कभी अलग अधर से होती नहीं।
अधरामृत का वह पान करै,
हम दूर खड़ी ह्वै देख रहीं।।
कान्ह की भृकुटी देख लगै,
मनो हम पर क्रोध कराय रही।
हमने सोचा कान्ह हमारे,
कुल कानि को छोड़ दौड़ रही ।।
हम दौड़ पड़ी जहँ कान्ह खड़े,
अधर बसुरिया लोटी थी।
कान्हा उसके पैर दबायें,
हमरे दिल को जलाय रही थी।।
Asharfi Lal Mishra |
बांसुरी हमारी बैरिन है,
कान्ह की अति ही प्यारी रही।
सूखे बांस की बांसुरी वह,
हमरे दिल को जलाय रही।।
वह बांसुरी हमारी सौतन है,
कभी अलग अधर से होती नहीं।
अधरामृत का वह पान करै,
हम दूर खड़ी ह्वै देख रहीं।।
कान्ह की भृकुटी देख लगै,
मनो हम पर क्रोध कराय रही।
हमने सोचा कान्ह हमारे,
कुल कानि को छोड़ दौड़ रही ।।
हम दौड़ पड़ी जहँ कान्ह खड़े,
अधर बसुरिया लोटी थी।
कान्हा उसके पैर दबायें,
हमरे दिल को जलाय रही थी।।
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