© अशर्फी लाल मिश्र ,अकबरपुर ,कानपुर *
वंशी की धुनि अति दुखदाई।
माई कोई जाये बरजै कन्हाई।।
हम तो विलोय रही मटकी में दही।
उधर कान्हा ने मुरली बजाई।।
माई वंशी की धुनि सुनि।
तेजी से मथनी चलाई।।
माई फूट गई मटकी बरजौ कन्हाई।
कोई न जाये हम ही जाती बरजन कन्हाई।।
घर घर से दौड़ पड़ी गोपियाँ दुखियारी।
पहुँच गई गोपियाँ जहाँ बाँके बिहारी।।
Asharfi Lal Mishra |
माई कोई जाये बरजै कन्हाई।।
हम तो विलोय रही मटकी में दही।
उधर कान्हा ने मुरली बजाई।।
माई वंशी की धुनि सुनि।
तेजी से मथनी चलाई।।
माई फूट गई मटकी बरजौ कन्हाई।
कोई न जाये हम ही जाती बरजन कन्हाई।।
घर घर से दौड़ पड़ी गोपियाँ दुखियारी।
पहुँच गई गोपियाँ जहाँ बाँके बिहारी।।
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