मंगलवार, 24 सितंबर 2019

वंशी की धुनि अति दुखदाई

© अशर्फी लाल मिश्र ,अकबरपुर ,कानपुर *

Asharfi Lal Mishra
वंशी   की   धुनि   अति   दुखदाई।
माई   कोई   जाये  बरजै  कन्हाई।।

हम तो विलोय रही मटकी में दही।
उधर  कान्हा   ने   मुरली   बजाई।।

माई   वंशी    की   धुनि    सुनि।
तेजी      से    मथनी      चलाई।।

माई   फूट   गई   मटकी    बरजौ   कन्हाई।
कोई न जाये हम ही जाती बरजन कन्हाई।।

घर घर से दौड़ पड़ी गोपियाँ दुखियारी।
पहुँच   गई  गोपियाँ जहाँ बाँके बिहारी।।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

जागो जागो लोक मतदाता

  कवि एवं लेखक - अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर। अशर्फी लाल मिश्र (1943-----) जागो जागो लोक मतदाता, मतदान  करो  तुम  बार बार। जनतन्त्र  म...