© अशर्फी लाल मिश्र ,अकबरपुर ,कानपुर *
बिदाई के पहले जो भरे थे नयन,
बिदाई समय अश्रुधारा बनने लगी।
मानो हिमालय पिघलने लगा,
या गंगा-यमुना के संगम की धारा बहने लगी।।
जो भी धारा के सम्मुख आया,
वह बहता ही गया ,बहता ही गया।
धारा में माता आगे रहीं,
सो बहती रहीं , सो बहती रहीं।।
धारा में पिता भी बहे,
तो बहते ही गये ,
बहते ही गये।
भ्राता भी बिन बहे न रहा ,
भगिनी भी बही,
वह ऐसी बही।
वह तो फूट ही पड़ी ,
बहना हम को क्यों तुम छोड़ चलीं।
सहेलियाँ भी बिन बहे न रहीं,
वे भी धारा में बहती गईं।
जो भी पड़ा धारा के सम्मुख,
सब के दिल का मलवा बहाती गई।।
साथ में केवल अश्रु की धारा ,
उसमें सभी को डुबोती गई।
पिता के घर को रोशन कर ,
प्रियतम के घर को चली गई।
Asharfi Lal Mishra |
बिदाई समय अश्रुधारा बनने लगी।
मानो हिमालय पिघलने लगा,
या गंगा-यमुना के संगम की धारा बहने लगी।।
जो भी धारा के सम्मुख आया,
वह बहता ही गया ,बहता ही गया।
धारा में माता आगे रहीं,
सो बहती रहीं , सो बहती रहीं।।
धारा में पिता भी बहे,
तो बहते ही गये ,
बहते ही गये।
भ्राता भी बिन बहे न रहा ,
भगिनी भी बही,
वह ऐसी बही।
वह तो फूट ही पड़ी ,
बहना हम को क्यों तुम छोड़ चलीं।
सहेलियाँ भी बिन बहे न रहीं,
वे भी धारा में बहती गईं।
जो भी पड़ा धारा के सम्मुख,
सब के दिल का मलवा बहाती गई।।
साथ में केवल अश्रु की धारा ,
उसमें सभी को डुबोती गई।
पिता के घर को रोशन कर ,
प्रियतम के घर को चली गई।
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