© अशर्फी लाल मिश्र ,अकबरपुर ,कानपुर *
राजनीति
दल बदलू का दल बदला , पर दिल नहिं बदला जाय।
धरिणी गगन मिलत दिखें , फिर भी क्षितिज कहाय।।
जन प्रतिनिधि परहेज करें , जनता से भी भेंट।
जन सेवा से अधिक रूचि , भावैं माला भेंट।।
मगर मुंह में पग पकड़ , गहरे पानी खेह।।
संत चलहि नहि धरणि पर , नभ में उड़ उड़ जाय।।
मन-संशय नाही दूर , कैसे संत कहाय।
काम राग छूटे नहीं , फिर भी संत कहाय।।
आँखों में चश्मा काला , देते शिक्षा आज।।
कौन विधि से देश बढ़े , बढ़े कमीशन खोर।।
प्रतिष्ठा
काम हमेशा कीजिये ,जो नाक ऊंची होय।
अपनी भी इज्जत बढ़े , घर की इज्जत होय।।
अजगर सोचे उदर की , नाहीं बदले सोच।।
संकट
प्रबल प्रवाह दरिया का , ठहरो करो विचार।
संकट काम आवै नाव , करती दरिया पार।।
प्रेम
प्रेम ह्रदय में जनमे , ना चाहे प्रतिदान।
चाहत यदि प्रतिदान की , उसे वासना जान।।
पाती अब इतिहास है , डिजिट दर्शन होय।
अब हिय पीड़ा अश्रु बन , प्रिय के सम्मुख होय।।
पीड़ा
जानै पीड़ा न समझे , बनता हो अनजान।
मत कहिये पीड़ा ताहि , उसका दिल शमशान ।।
प्रकृति
धरिणी एक टक देख रही, कब वारिद दिख जाय।
उमड़ घुमड़ वारिद दिखे , धरा मगन हुइ जाय।।
दामिनि दमक मेघ कड़क , जल से धरा नहाय।
पुलकित हुई धरणी अब , मन तृप्त हुइ जाय।।
विचार
बदला बदला हर कोइ , बदल रही है सोच।
माता पिता अलग रहें, बेटा की है सोच।।
संतान की करनी से , वंश कलंकित होय।।..
विश्वास
अचानक देय भरोसा , मती करियो विश्वास।
सावधानी तब बरतो , कितना होइ हि ख़ास।।
सत्य
सत्य सब काल में सत्य , सत्य काटा न जाय।
सत्य कभी डरता नहीं, भले काल आ जाय।।
डिजिटल युग में अब सुलभ , हिय उमगे तब बात।।
झूला
सावन में झूला नाहि , न पैंग देखी जाय।
अब गीत बने इतिहास , गीत न गाये जाय।।
-- लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर ।
अशर्फी लाल मिश्र |
दल बदलू का दल बदला , पर दिल नहिं बदला जाय।
धरिणी गगन मिलत दिखें , फिर भी क्षितिज कहाय।।
जन प्रतिनिधि परहेज करें , जनता से भी भेंट।
जन सेवा से अधिक रूचि , भावैं माला भेंट।।
कालाधन
काला धन जिन चाहिए , ढूंढें सुरक्षित गेह।मगर मुंह में पग पकड़ , गहरे पानी खेह।।
संत
संत धरणि पर पग धरहि , धरणि धन्य हुइ जाय।संत चलहि नहि धरणि पर , नभ में उड़ उड़ जाय।।
मन-संशय नाही दूर , कैसे संत कहाय।
काम राग छूटे नहीं , फिर भी संत कहाय।।
शिक्षक
मुंह में पान मसाला , ऐसे गुरुवर आज।आँखों में चश्मा काला , देते शिक्षा आज।।
भ्रष्टाचार
भ्रष्टाचार रग रग में , फैला चारो ओर।कौन विधि से देश बढ़े , बढ़े कमीशन खोर।।
प्रतिष्ठा
काम हमेशा कीजिये ,जो नाक ऊंची होय।
अपनी भी इज्जत बढ़े , घर की इज्जत होय।।
कर्म
भाग्य बदले कर्म से , कर्म बदलता सोच।अजगर सोचे उदर की , नाहीं बदले सोच।।
संकट
प्रबल प्रवाह दरिया का , ठहरो करो विचार।
संकट काम आवै नाव , करती दरिया पार।।
प्रेम
प्रेम ह्रदय में जनमे , ना चाहे प्रतिदान।
चाहत यदि प्रतिदान की , उसे वासना जान।।
पाती अब इतिहास है , डिजिट दर्शन होय।
अब हिय पीड़ा अश्रु बन , प्रिय के सम्मुख होय।।
पीड़ा
जानै पीड़ा न समझे , बनता हो अनजान।
मत कहिये पीड़ा ताहि , उसका दिल शमशान ।।
प्रकृति
धरिणी एक टक देख रही, कब वारिद दिख जाय।
उमड़ घुमड़ वारिद दिखे , धरा मगन हुइ जाय।।
दामिनि दमक मेघ कड़क , जल से धरा नहाय।
पुलकित हुई धरणी अब , मन तृप्त हुइ जाय।।
विचार
बदला बदला हर कोइ , बदल रही है सोच।
माता पिता अलग रहें, बेटा की है सोच।।
संतान
संतान की करनी से , कुल की इज्जत होय।संतान की करनी से , वंश कलंकित होय।।..
विश्वास
अचानक देय भरोसा , मती करियो विश्वास।
सावधानी तब बरतो , कितना होइ हि ख़ास।।
सत्य
सत्य सब काल में सत्य , सत्य काटा न जाय।
सत्य कभी डरता नहीं, भले काल आ जाय।।
संपर्क
दूती होय या पाती , हो गई बीती बात।डिजिटल युग में अब सुलभ , हिय उमगे तब बात।।
झूला
सावन में झूला नाहि , न पैंग देखी जाय।
अब गीत बने इतिहास , गीत न गाये जाय।।
-- लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर ।
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