-- अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर
अशर्फी लाल मिश्र |
मैं चाहूँ बन जाऊँ,
पीपल की पतलइयाँ।
आकर कुछ काल ठहरें,
श्रमित पथिक मोरी छइयाँ ।।
पवन से विनती मेरी,
तू चल धीरे धीरे।
पथिक को आये झपकी,
जब आये मेरी छइयाँ ।।
-- लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(१८-०७ -२०२२ ) को 'सावन की है छटा निराली'(चर्चा अंक -४४९४) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
अनीता जी ! आप का आभार।
हटाएंपथिक को आये झपकी,
जवाब देंहटाएंजब आये मेरी छइयाँ ।।
वाह!. क्या बात है!. सुंदर भाव!--ब्रजेन्द्र नाथ
आप का बहुत बहुत आभार ।
हटाएंवाह! छोटी सी अभिव्यक्ति में सुंदर कोमल भाव।
जवाब देंहटाएंआप का बहुत बहुत शुक्रिया।
हटाएंसुंदर अभिव्यक्ति आदरणीय ।
जवाब देंहटाएंआप हृदय से शुक्रिया.
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