लेखक : अशर्फी लाल मिश्र
अशर्फी लाल मिश्र |
लगा माघ शीत अति भारी,
कैसे बिताऊँ ठंढ अनियारी।
हाड़ कांपै अग्नी सीरी,
कोहरे की अब दादागीरी।
शीत मीत पवन देव,
निकल पड़े हैं धीरे धीरे।
अवसर देख मेघ आ धमके,
बूंदे झरती धीरे धीरे।
दिन रात में नाहीं कोई अंतर,
दिनकर मानो छू मंतर।
रचयिता: अशर्फी लाल मिश्र , अकबरपुर,कानपुर।
'मयंक' जी बहुत बहुत आभार
जवाब देंहटाएंवर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए सटीक रचना।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद।
हटाएंसामायिक मौसम पर सटीक चित्रण।
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना।
बहुत बहुत आभार।
हटाएंअति उत्तम गुरूवर , एकदम मौलिक
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार।
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