शनिवार, 17 अक्तूबर 2020

नीति के दोहे (मुक्तक)

© कवि : अशर्फी लाल मिश्र ,अकबरपुर ,कानपुर। 

अशर्फी लाल मिश्र 
कर्ज 

पैसे  दिये  उधार हों , मांगो बिन संकोच। 
डूब जाये  सारा धन ,यदि होगा संकोच।।

शर्म 

व्यापार होय या  काम ,शर्म  पास  नहि  होय। 
उसकी  सदैव  तरक्की , यह जानत सब कोय।।

Poet: Asharfi Lal Mishra, Akbarpur, Kanpur.


1 टिप्पणी:

विप्र सुदामा - 40

  लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर। अशर्फी लाल मिश्र (1943-----) नाथ  प्रभु  कृपा जब होये, क्षण में  छप्पर महल होये।  प्...