शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2020

नीति के दोहे (मुक्तक)









[© अशर्फी लाल मिश्र ,अकबरपुर,कानपुर ]

राज्य  हित में कांटे भी, बन जाते  है फूल। 
अरावलीय    पहाड़ियाँ ,राणा के अनुकूल।।

केहरि छोड़े न सुभाव , कितना   बूढा     होय। 
हिंसा उसके  मूल  में ,कभी न सात्विक होय।।






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