बुधवार, 8 जनवरी 2020

है कोई मेरा जो ताप नापै (मुक्तक )

Asharfi Lal Mishra










है  कोई   मेरा  जो  ताप  नापै।
कड़क   सर्दी   में  हाड़    कापै।।

दिनकर         भी           कापै। 
हिमकर        भी          कापै।। 

उडगन की  कोई  मिशाल  नहीं। 
अग्नि   में  भी अब   ताप  नहीं।।

शैया  भी  अब  तो  हिम में डूबी।
अब तो लगता जीवन नैया डूबी।।

है   कोई  मेरा   जो  ताप   नापै।
कड़क   सर्दी    में    हाड़   कापै।। 

© कवि ; अशर्फी लाल मिश्र ,अकबरपुर ,कानपुर। 

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