Asharfi Lal Mishra |
है कोई मेरा जो ताप नापै।
कड़क सर्दी में हाड़ कापै।।
कड़क सर्दी में हाड़ कापै।।
दिनकर भी कापै।
हिमकर भी कापै।।
उडगन की कोई मिशाल नहीं।
अग्नि में भी अब ताप नहीं।।
शैया भी अब तो हिम में डूबी।
अब तो लगता जीवन नैया डूबी।।
है कोई मेरा जो ताप नापै।
कड़क सर्दी में हाड़ कापै।।
कड़क सर्दी में हाड़ कापै।।
© कवि ; अशर्फी लाल मिश्र ,अकबरपुर ,कानपुर।
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