Asharfi Lal Mishra |
शीत लहर , अपनी डगर ,
मस्ती में झूमती चली आ रही है।
महा निर्दयी , भृकुटी चढ़ाये,
बाहें फैलाये चली आ रही है।
बूढ़ों को देख , आँखे तरेरती,
मानो खाने को चली आ रही है।
शीत लहर के परम् मित्र,
हे पवन देव विनती सुनिये।
छोड़ दो साथ शीत लहर का,
घर में छिपकर मीत बनिये।
सूरज देव भी साथ नहीं,
बूढ़े अब अग्नि के शरण गये।
© कवि: अशर्फी लाल मिश्र , अकबरपुर ,कानपुर।
महा निर्दयी , भृकुटी चढ़ाये,
बाहें फैलाये चली आ रही है।
बूढ़ों को देख , आँखे तरेरती,
मानो खाने को चली आ रही है।
शीत लहर के परम् मित्र,
हे पवन देव विनती सुनिये।
छोड़ दो साथ शीत लहर का,
घर में छिपकर मीत बनिये।
सूरज देव भी साथ नहीं,
बूढ़े अब अग्नि के शरण गये।
© कवि: अशर्फी लाल मिश्र , अकबरपुर ,कानपुर।
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