बुधवार, 25 सितंबर 2019

विप्र सुदामा-4

© अशर्फी लाल मिश्र ,अकबरपुर, कानपुर *
देख   सुशीला   की   एक   ही रट,
द्वारिका जाओ द्वारिका जाओ।
आठो      पहर     एक    ही     रट,
द्वारिका जाओ द्वारिका जाओ।।

प्रिये कैसे जाऊँ द्वारिकापुरी,
तन  में  केवल  एक   लंगोट।
घर में नहीं है अन्न का दाना,
क्या  ले   जाऊँ  उनकों   भेंट।।

नाथ   पुरानी   धोती   है    एक,
उसे    ही   पहनो  कनकी   भेंट।
हम ब्राह्मण स्वाभिमानी प्रिये,
कोई   इच्छा   नाहीं  मेरे   हिये।।

कान्हा तुम्हारे बचपन के मीत,
नाहीं  बिसरिहैं   कहती है नीत।
मत रटिये जाओ द्वारिकापुरी,
हम  नाहीं  जैहैं    द्वारिकापुरी।।

लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर,कानपुर।©

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विप्र सुदामा - 56

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