© अशर्फी लाल मिश्र , अकबरपुर , कानपुर *
सुदामा को मांगे भीख नहीं,
घर में जलता चूल्हा नहीं।
सुदामा अभी भी धैर्य बनाये,
नींद किसी को आती नहीं।।
सुशीला का धैर्य था टूट गया,
बार बार याद दिलावहिं सुदामा।
कान्हा बचपन के मीत तुम्हारे,
द्वारिका के राजा कान्हा तुम्हारे।।
जाओ द्वारिका ,जाओ द्वारिका,
बस एक की रट वह लगाने लगी।
सुदामा कहैं प्रिये कान्हा हैं राजा,
हम हैं भिखारी जाने में लाजा।।
कहाँ राजा कहाँ एक भिखारी,
प्रिये कान्हा से कैसे समता हमारी।
हम नाहीं जैहैं द्वारिकापुरी,
भीख मांग गुजारा आपन नगरी।।
सुदामा को मांगे भीख नहीं,
घर में जलता चूल्हा नहीं।
सुदामा अभी भी धैर्य बनाये,
नींद किसी को आती नहीं।।
सुशीला का धैर्य था टूट गया,
बार बार याद दिलावहिं सुदामा।
कान्हा बचपन के मीत तुम्हारे,
द्वारिका के राजा कान्हा तुम्हारे।।
जाओ द्वारिका ,जाओ द्वारिका,
बस एक की रट वह लगाने लगी।
सुदामा कहैं प्रिये कान्हा हैं राजा,
हम हैं भिखारी जाने में लाजा।।
कहाँ राजा कहाँ एक भिखारी,
प्रिये कान्हा से कैसे समता हमारी।
हम नाहीं जैहैं द्वारिकापुरी,
भीख मांग गुजारा आपन नगरी।।
लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©
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