--अशर्फी लाल मिश्र ,अकबरपुर,कानपुर। ©
सुदामा की छानी टूटी थी,
यह कोई बड़ी बात नहीं थी।
चूल्हे पर तवा था मिटटी का,
काठ की कठौती फूटी थी।।
मिटटी के घट में पानी था ,
कांसे का लोटा केवल एक।
उसी से पूजा ,उसी से पीना,
उसी से होते काम अनेक।।
घर में खाट थी केवल एक ,
टूटी पाटी गसी अनेक।
भूमि शयन कोई बात नहीं,
भूखे पेट आये नींद नहीं।।
कई दिनों से बच्चे भूखे,
पत्नी सुशीला थी विचलित।
सुशीला सुदामा के पैरों गिरी,
नाथ बच्चे हमारे भूखे हैं।।
सुदामा ने कहा भीख मिलती नहीं,
प्रिये जल पीकर ही गुजारा करो।
नाथ हम तो जल ही पीकर रहे,
पर बच्चे हमारे जल पीकर कैसे रहें।।
सुदामा की छानी टूटी थी,
यह कोई बड़ी बात नहीं थी।
चूल्हे पर तवा था मिटटी का,
काठ की कठौती फूटी थी।।
मिटटी के घट में पानी था ,
कांसे का लोटा केवल एक।
उसी से पूजा ,उसी से पीना,
उसी से होते काम अनेक।।
घर में खाट थी केवल एक ,
टूटी पाटी गसी अनेक।
भूमि शयन कोई बात नहीं,
भूखे पेट आये नींद नहीं।।
कई दिनों से बच्चे भूखे,
पत्नी सुशीला थी विचलित।
सुशीला सुदामा के पैरों गिरी,
नाथ बच्चे हमारे भूखे हैं।।
सुदामा ने कहा भीख मिलती नहीं,
प्रिये जल पीकर ही गुजारा करो।
नाथ हम तो जल ही पीकर रहे,
पर बच्चे हमारे जल पीकर कैसे रहें।।
लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर , कानपुर।©
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें