लेखक : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।
अशर्फी लाल मिश्र (1943------) |
मनहि हारे हार मीत, मन के जीते जीत।
रक्त चाप सदा हि बढ़े, मन के हारे मीत।।
लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©
-- लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©
अशर्फी लाल मिश्र |
पूर्णिमा तिथि थी अषाढ़ मास की,
जब महर्षि व्यास ने जन्म लिया।
पिता इनके थे ऋषि पाराशर,
माता थीं सत्यवती निषाद पुत्री।।
नौका चालन के समय,
ऋषि मोहित हुये सत्यवती पर।
ऋषि ने अपने तपोबल से,
दिन में कुहासा प्रकट किया।।
गांधर्ब विवाह कर सत्यवती से,
कृष्ण द्विपायन का जन्म हुआ।
वशिष्ठ पौत्र कृष्ण द्विपायन,
दिव्य ज्ञान से पूरित थे।।
वेद अभी जो मौखिक थे,
संकलित कर लिपिबद्ध किये।
महाभारत के वे रचयिता थे,
पुराणों के थे रचनाकार।।
विद्वानों ने इनको व्यास कहा।
वेदों के थे वे व्याख्याकर।।
-- लेखक एवं रचनाकार: अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©
लेखक : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।
अशर्फी लाल मिश्र (1943----) |
भामा रही बात विदाई की,
ऐसी विदाई कभी देखी नहीं।
विदाई की खबर ज्योंही फैली,
सिसक पड़ी थी सिगरी नगरी।।
हर कोई अँखियन नीर भरे,
दौड़ रहा घर मीत की ओर।
मत जाओ मत जाओ कान्ह,
कह उमड़ पड़ी सिगरी नगरी।।
बहुविधि समझाया उनको मैंने,
कहा दूत द्वारिका से है आया।
जब मांगी विदा हाथ जोड़कर,
दहाड़ मार रोई सिगरी नगरी।।
हर कोई बचन था माँग रहा,
कान्ह कब ऐहौ मेरी नगरी।
कोई पथ भूमि लेट कह रहा,
कान्ह कब ऐहौ मेरी नगरी।।
अब हम चल पड़े धीरे धीरे,
आ पहुँचे थे सीमा नगरी।
साथ देवि सुशीला अरु मीत,
अरु पीछे पीछे सिगरी नगरी।।
लेखक : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©
लेखक : अशर्फी लाल मिश्र अकबरपुर, कानपुर।
अशर्फी लाल मिश्र ( 1943----) |
अभी कान्ह चुप चाप पड़े थे,
मुख से निकलहि शब्द नहीँ।
भामा के प्रश्नों की झड़ी लगी,
अब कान्हा उठकर बैठ गये।।
भामा! मुख नहिं होय वर्णन,
अद्भुत आत्मिय स्वागत था।
दिल खोल मिले थे मीत विप्र,
उसी भाव से देवि सुशीला।।
मित्र निवास कुटी दिव्य में,
कुटी दिव्य थी फूस की।
देवि सुशीला मिलीं महल में,
चारु चित्रों से महल सजा।।
महल द्वार इक चित्र अनुपम,
बचपन की थी सखी हमारी।
अधरों पर शोभित वंशी मेरे,
बायें शोभित बृषभानु कुमारी।।
जीवन का मेरा सौभाग्य,
जो दर्शन देवि सुशीला के।
मिलन मित्र अति सूखदाई,
अमिट छाप मेरे हिय छाई।।
लेखक : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©
लेखक : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।
अशर्फी लाल मिश्र (1943------) |
लेट गये थे निज शैय्या पर,
बिन बोले कान्हा गये महल।
भामा लाईं धाय मोहन भोग,
रुक्मिणी लिये शीतल जल।।
नाथ करिये अब जलपान ,
सम्मुख खड़ी करबद्ध भामा।
कैसी देवि हैं मेरी सुशीला,
अरु कैसे ब्रह्मज्ञानी सुदामा?
कैसा मिलन रहा मीत से ,
कीन्हा कैसा स्वागत मीत?
किस भाव से मिले सखा,
अरु कैसी हुई विदाई थी?
नाथ आप जब पहुँचे होंगे,
मीत धाय गले मिले होंगे?
अंशुवन धार बह रही होगी,
शब्द न निकला होगा मुख से?
कुछ मुझे बताने लायक,
मीत ने कोई प्रश्न किया?
क्या ब्रह्मज्ञानी विप्र देव ने,
मुझ दासी को याद किया?
लेखक: अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©
लेखक : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।
अशर्फी लाल मिश्र (1943-------)भाषण सुनो वक्ता का, दोनों कान लगाय।
जीवन दर्शन जानिये, 'लाल' कहत समझाय।।1।।
साधू संत प्रवचन हो, सुनिए चित्त लगाय।
जीवन दर्शन जानिये, 'लाल' कहत समझाय।।2।।
लेखक: अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©
लेखक : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर। अशर्फी लाल मिश्र (1943------) मनहि हारे हार मीत, मन के जीते जीत। रक्त चाप सदा हि बढ़े, मन के हार...