शनिवार, 21 जून 2025

विप्र सुदामा - 73

 लेखक : अशर्फी लाल मिश्र अकबरपुर, कानपुर।

अशर्फी लाल मिश्र ( 1943----)







अभी कान्ह चुप चाप पड़े थे,

मुख से निकलहि  शब्द नहीँ।

भामा के प्रश्नों की झड़ी लगी,

अब कान्हा उठकर बैठ गये।।


भामा! मुख  नहिं होय वर्णन,

अद्भुत आत्मिय  स्वागत था।

दिल खोल मिले थे मीत विप्र, 

उसी भाव  से  देवि  सुशीला।।


मित्र  निवास कुटी  दिव्य में,

कुटी  दिव्य   थी   फूस  की।

देवि सुशीला मिलीं महल में,

चारु  चित्रों  से महल  सजा।।


महल द्वार इक चित्र अनुपम,

बचपन की  थी सखी  हमारी।

अधरों  पर  शोभित  वंशी मेरे,

बायें शोभित बृषभानु कुमारी।।


जीवन  का मेरा  सौभाग्य, 

जो दर्शन देवि सुशीला के।

मिलन मित्र अति सूखदाई,

अमिट छाप मेरे हिय छाई।।

लेखक : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©


शुक्रवार, 13 जून 2025

विप्र सुदामा - 72

 लेखक : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।

अशर्फी लाल मिश्र (1943------)







लेट गये  थे  निज शैय्या पर,

बिन बोले कान्हा  गये महल।

भामा  लाईं धाय मोहन भोग,

रुक्मिणी लिये  शीतल जल।।


नाथ   करिये  अब जलपान ,

सम्मुख खड़ी करबद्ध भामा।

कैसी  देवि  हैं  मेरी  सुशीला,

अरु कैसे ब्रह्मज्ञानी सुदामा?


कैसा  मिलन  रहा मीत से , 

कीन्हा कैसा स्वागत मीत?

किस भाव  से  मिले सखा,

अरु  कैसी हुई  विदाई थी?


नाथ  आप  जब  पहुँचे होंगे,

 मीत  धाय  गले  मिले होंगे?

अंशुवन  धार  बह  रही होगी,

शब्द न निकला होगा मुख से?


कुछ  मुझे  बताने लायक,

मीत ने  कोई  प्रश्न किया?

क्या ब्रह्मज्ञानी विप्र देव ने,

मुझ दासी को  याद किया?

लेखक: अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©


विप्र सुदामा - 73

  लेखक : अशर्फी लाल मिश्र अकबरपुर, कानपुर। अशर्फी लाल मिश्र ( 1943----) अभी कान्ह चुप चाप पड़े थे, मुख से निकलहि  शब्द नहीँ। भामा के प्रश्नों...