गुरुवार, 20 मार्च 2025

विप्र सुदामा - 68

 लेखक : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।

अशर्फी लाल मिश्र (1943----)






सुशीला  सुन  कान्हा  मुख,

घर जाना  चाहूँ  देवि अभी।

चरण रज लेकर सुशीला के,

चल पड़े थे कान्हा धीरे धीरे।।


नयन अश्रु अब दे रहे बिदाई,

सुशीला मुख  इक शब्द नहीं।।

कान्हा गये अब मीत के पास,

गले  लिपटे  मुख   शब्द नहीं।।


थी लहर ख़ुशी की  चारों ओर,

जब कान्हा आये पुरी सुदामा,

घर घर में  एक  ही चर्चा होती,

हैँ द्वारिका राजा मीत सुदामा।।


आज वापसी द्वारिका राजा,

छा  गई  उदासी चारों  ओर।

पक्षी कलरव अब बन्द किये,

पशु भी अब मुख तृण त्यागे।।


छा गई उदासी पुरी सुदामा,

हर कोई दौड़ दे रहा बिदाई।

हर कोई  अँसुअन नीर भरे,

विप्र  मीतहि दे रहा  बिदाई।।

लेखक: अशर्फी लाल मिश्र,अकबरपुर, कानपुर।©



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