-- लेखक : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।
अशर्फी लाल मिश्र (1943----) |
राजनीति
जातिवाद है बढ़ रहा ,राजनीति के संग।
नेता हैं अब कर रहे ,समरसता को भंग।।
समरसता चिन्ता नहीं, सत्ता की है भूख।
समाज में खाई बढ़े , चाहें जाति रसूख।।
ज्ञान
ज्ञान उसे मत दीजिये,जो नहि ग्राहक होय।
जिमि वर्षा मरु भूमि में,तृण उपजे नहि कोय।।
ईर्ष्या
ईर्ष्या बसे पड़ोस में, राहु केतु सम जान।
या फिर बसे रिश्तों में, दूरी में कल्यान।।
--लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©
सुन्दर दोहे
जवाब देंहटाएंआभार आपका।
हटाएंवाह! सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंआभार आपका।
हटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक...
आभार आपका।
हटाएंबहुत सुंदर दोहे
जवाब देंहटाएंआभार आपका।
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