रविवार, 28 जून 2020

अभिलाषा (मुक्तक)

© अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।

अशर्फी लाल मिश्र
ईश हमारी यह अभिलाषा,
तन में रहे जब तक श्वासा।
सुख  दुख में सम भाव रहे,
 प्रभु  चरणों  की चाव रहे।।

खाने  को  जो भी  मिले,
उसमें मन मेरा संतुष्ट रहे।
कपड़ों की कोई चाह नहीं,
बस केवल तन ढका रहे।।

घर  के   एक   कोने  में,
सदैव  शयन   होता  रहे।
अपनों  का  मधुर  गुंजन,
कानों में सदा पड़ता रहे।।

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