© अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।
ईश हमारी यह अभिलाषा,
तन में रहे जब तक श्वासा।
सुख दुख में सम भाव रहे,
प्रभु चरणों की चाव रहे।।
खाने को जो भी मिले,
उसमें मन मेरा संतुष्ट रहे।
कपड़ों की कोई चाह नहीं,
बस केवल तन ढका रहे।।
घर के एक कोने में,
सदैव शयन होता रहे।
अपनों का मधुर गुंजन,
कानों में सदा पड़ता रहे।।
अशर्फी लाल मिश्र |
तन में रहे जब तक श्वासा।
सुख दुख में सम भाव रहे,
प्रभु चरणों की चाव रहे।।
खाने को जो भी मिले,
उसमें मन मेरा संतुष्ट रहे।
कपड़ों की कोई चाह नहीं,
बस केवल तन ढका रहे।।
घर के एक कोने में,
सदैव शयन होता रहे।
अपनों का मधुर गुंजन,
कानों में सदा पड़ता रहे।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें