© अशर्फी लाल मिश्र ,अकबरपुर ,कानपुर
शांत स्वभाव , विशाल तन ।
कोलाहल विरक्त, करता हूँ शयन।।
विटप देते शीतल छाया।
पवन डुलाता , अविरल पंखा।।
कद मेरा लम्बा ,लम्बाई मेरी शोभा।
तन मेरा चिकना ,कही कहीं खुरदरा।।
सानिध्य के लिए , दौड़ता मेरे साथ।
भले ही हो वाहन , उसके हाथ।।
मेरे सानिध्य में ,प्रसन्न रहता वह।
गंतव्य पर पहुँच ,तारीफ करता वह।।
न देखता हूँ निर्धन ,न देखता धनवाला।
न देखता हूँ गोरा ,न देखता हूँ काला।।
न पूंछता हूँ जाति ,न देखता हूँ माला।
मैं हूँ भेद भाव रहित ,राजपथ दिलवाला।।
शांत स्वभाव , विशाल तन ।
कोलाहल विरक्त, करता हूँ शयन।।
विटप देते शीतल छाया।
पवन डुलाता , अविरल पंखा।।
कद मेरा लम्बा ,लम्बाई मेरी शोभा।
तन मेरा चिकना ,कही कहीं खुरदरा।।
सानिध्य के लिए , दौड़ता मेरे साथ।
भले ही हो वाहन , उसके हाथ।।
मेरे सानिध्य में ,प्रसन्न रहता वह।
गंतव्य पर पहुँच ,तारीफ करता वह।।
न देखता हूँ निर्धन ,न देखता धनवाला।
न देखता हूँ गोरा ,न देखता हूँ काला।।
न पूंछता हूँ जाति ,न देखता हूँ माला।
मैं हूँ भेद भाव रहित ,राजपथ दिलवाला।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें