सोमवार, 23 सितंबर 2019

राजपथ (कविता)

 © अशर्फी लाल मिश्र ,अकबरपुर ,कानपुर                         
शांत      स्वभाव , विशाल        तन ।
कोलाहल विरक्त, करता   हूँ  शयन।। 

विटप     देते        शीतल        छाया।
पवन    डुलाता ,  अविरल      पंखा।

कद मेरा लम्बा ,लम्बाई  मेरी शोभा।
तन मेरा चिकना ,कही कहीं खुरदरा।

सानिध्य के लिए , दौड़ता  मेरे   साथ।
भले    ही  हो  वाहन , उसके       हाथ।

मेरे  सानिध्य  में ,प्रसन्न  रहता वह।
गंतव्य पर पहुँच ,तारीफ करता वह।

न देखता हूँ निर्धन ,न देखता धनवाला।
न  देखता  हूँ गोरा ,न  देखता   हूँ काला।

न पूंछता हूँ जाति ,न  देखता   हूँ माला।
मैं हूँ भेद भाव रहित ,राजपथ दिलवाला।

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