शुक्रवार, 11 अक्टूबर 2024

विप्र सुदामा -51

 लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर कानपुर।©

अशर्फी लाल मिश्र (1943------)








बहुत काल बीता बिन भोजन,

अब व्याकुल थी मन मेँ भामा। 

विनती कर  रही  है सत्यभामा,

द्वारिका बुला लो विप्र सुदामा।।


प्रिये तुम नहीं जानती  विप्र को,

मीत हमारा तत्व ज्ञानी ब्राह्मण।

भौतिक सुख  जाने क्षण  भंगुर,

सखा हमारा ब्रह्म ज्ञानी ब्राह्मण।।


प्रिये मित्र हमारे त्याग मूर्ति,

लालच  नाहीं  उनके  हिये।

सदा बसें हिय विप्र त्रिलोकी,

कैसे  बुला  लूँ   मीत  प्रिये।।


अगर बुलाऊँ मीत सुदामा,

मान  घटेगा  त्रिलोकी  का।

हम हैं तुच्छ  द्वारिका राजा,

कैसे बुलाऊँ  विप्र  सुदामा।।


यद्यपि मीत  सुदामा मेरे,

फिर  भी  शंका  मन मेरे।

कहीं  कुछ अनुचित न हो,

भय ब्राह्मण शाप मन मेरे।।

- लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©

 

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