-- अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©
अशर्फी लाल मिश्र |
सिकुड़ रहे हैं रिश्ते आज,
छोटे कुटुम्ब की लहर आज।
राखी में रहती सूनी कलाई,
नाहीं बहना अपनी आज।।
होली आई उल्लास भरी,
बिनु भौजी घर सूना आज।
कौन लगाये रंग महावर,
घर में नाहीं भौजी आज।।
भैया दूज का पर्व अनूठा,
नाहीं बहना अपनी आज।
कौन लगाये भाल तिलक,
नाहीं बहना अपनी आज।।
बहना लिये है राखी हाथ,
नाहीं भैया अपना आज।
भैया दूज को थाल सजा,
भैया नाहीं अपना आज।।
-- लेखक एवं रचनाकार: अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©
सच में रिश्ते सिकुड़ रहे हैं.. सराहनीय रचना
जवाब देंहटाएंजिज्ञासा जी ! बहुत बहुत आभार आपका।
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