रविवार, 16 जून 2024

विप्र सुदामा - 47

 - लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।

अशर्फी लाल मिश्र (1943----)







जान अवसान  दिवस का,

महल  त्याग  बैठे भूमि पर।

संध्या बंदन करने हेतु विप्र,

अब ध्यान लगाये भूमि पर।।


ध्यान  लगाया था जैसे ही,

नींद  उड़  गई  कान्हा  की।

थाली  भोजन की रखी रही,

मनु घड़ी आ गई संकट की।। 


इसी बीच  आ  गये दूत,

खबर सुनाई  विप्र  की।

महल  नाहीं भावे  विप्र,

मन में  प्रीति  छानी की।।


जाओ  विश्वकर्मा पास,

सन्देश  सुना  दो   मेरा।

दिव्य  छानी  ऐसी होये,

मैं भी लगाऊँ नित फेरा।।


ध्यान रहे  इस  बात का,

भंग ध्यान नहि विप्र का।

मन वांछित  छानी  होये,

हर्षित  मन  हो  विप्र का।।

-लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©

बुधवार, 12 जून 2024

विप्र सुदामा - 46

 -लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।

अशर्फी लाल मिश्र (1943----)







प्रिये मुझे  लागे प्रिय छानी,

जिसमे  रमते सदा  बिहारी।

प्रिये कैसे छोड़ूँ छानी अपनी,

जँह पाहुन बन आते बिहारी।


पाहुन छोड़ महल आऊँ,

यह कहती है नीति नहीं। 

बचपन का  भी प्रेम नसै, 

ये मेरे कुल की रीति नहीं।।


प्रिये मैं  हूँ  नहीं  अकेला,

रमे हैं मन  में  मीत हमारे।

कैसे निकालूँ निज मन से,

कैसे आऊँ  महल  तुम्हारे।।


मीत  हमारे  अति  टेढ़े,

नाहीं  निकलें  मन   से

लोग  कहें   त्रिभंगी   हैँ,

नाहीं   निकलें  मन  से।।


सीधे होते  मीत  हमारे,

अब तक  जाते निकल। 

 तन  से  टेढ़े  टेढ़ी  दृष्टि, 

करें सदा  हिय  हलचल।।

-लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर कानपुर।©

शुक्रवार, 7 जून 2024

विप्र सुदामा - 45

 - लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।

अशर्फी लाल मिश्र (1943-----)







मुझे प्रिय  छप्पर छानी,

त्रिलोक में सबसे न्यारी।

तिनके  तिनके में रमे हैं,

वृन्दावन  कुंज   बिहारी।।

 

टूटी खाट  पर लेटत ही,

आती   नींद  आँखों  में,

सारी  रात  मुरली ध्वनि,

गूँजा  करती   कानों  में।।


ब्रह्म  मुहूर्त  के आते  आते,

मुरली ध्वनि हो जाती बन्द।

अचानक आँखें तब खुलतीं,

जब कलरव करते पक्षी वृन्द।।


सुबह  सुबह  ऊषा सुन्दरी,

नित्य जगाये  निज कर से।

हम भी करते आभार प्रकट,

दोनों  जोड़े   कर  हिय  से।।


महल तुम्हारा लागे जेल,

कैसे आऊँ महल तुम्हारे?

सदा रहते  हैं बन्द कपाट,

कैसे  मिलेंगे  मीत  हमारे?

लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लालमिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©

मंगलवार, 4 जून 2024

विप्र सुदामा - 44

 - लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।

अशर्फी लाल मिश्र (1943-----)







प्रिया  कह  रही मुझ से,

मेरा भी  कक्ष शयन का।

उसमें है एक सुन्दर चित्र, 

मुरली  बजाते  कृष्ण का।।


प्रिया तुम्हारी अपनी चाल,

मत बहकाओ मुझको अब।

कान्हा  यद्यपि मीत  हमारे,

पर बिना बुलाये आये कब?


नाथ पधारो अब महल में,

कुछ भी  कष्ट  नहीं होगा।

शयन कक्ष  में हैं वातायन,

बहता पवन  शीतल होगा।।


 नाथ पार्श्व में एक सरोवर,

उसमें  करिये  नित  स्नान,

उसी तट पर स्वच्छ शिला,

बैठ उसी पर करिये ध्यान।।


नाथ  दया  मुरलीधर  की,

किसी बात की कमी नहीं।

अब घर घर भिक्षाटन की, 

अब है  कोई  जरुरत नहीं।।

लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©

विप्र सुदामा - 47

  - लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर। अशर्फी लाल मिश्र (1943----) जान अवसान  दिवस का, महल  त्याग  बैठे भूमि पर। संध्या ब...